(आलेख : बादल सरोज)
अभी अभियान ढंग से रफ़्तार भी नहीं पकड़ पाया है, मगर लगता है, मुंहबली की साँसें अभी से फूलने लगी है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक पल्टीमारों की उल्टापल्टी के लिए सारी थैलियाँ खोलने और पूरी ताकत झोंकने के बाद भी पहले ही समां नहीं बन पा रहा था कि इसी बीच आये इलेक्टोरल बांड्स काण्ड के धमाके के बाद तो सारे सुर ही गड़बड़ाये हुए हैं।
खुद का दिया ‘इस बार 400 पार’ का नारा, लगता है खुद ही भूल गए हैं। ऐसे हालात में बनी गत के लिए ही नानी याद आने का मुहावरा बना हुआ है। मोदी जी को सचमुच में नानी, मांयें और उनकी बेटियों की याद आने लगी है। वे अपने गले की पूरी ताकत, नारी शक्ति के एकमात्र अधिष्ठाता बनने और अपने विपक्षियों को नारी का अपमान करने वाला बताने में खर्च किये जा रहे हैं।
शुरुआत उसी दादर के मैदान से की है, जहां कुछ रोज पहले इंडिया गठबंधन की रैली हुई थी और इसमें बोलते हुए राहुल गाँधी ने मिथकों के सहारे मोदी के पीछे की आसुरी शक्ति का परिचय कराते हुए कहा था कि “हिन्दू धर्म के मिथकों में आसुरी शक्ति का वर्णन है, जो अन्याय और अत्याचार करती है।
एक ऐसी ही शक्ति नरेंद्र मोदी को चला रही है। हमारी लड़ाई इसी शक्ति के खिलाफ है। पूंजीवादी और सामन्तवादी ताकतों के खिलाफ है।“ जाहिर है, इशारा अडानी सरीखे कारपोरेट घरानों और आरएसएस जैसे मोदी के परिवारियों की तरफ था ; उन्हें सार्वजनिक रूप से बचाने की प्रधानमंत्री मोदी में न हिम्मत थी, न तर्क या तथ्य थे, सो मुंहबली ने डेढ़ सियानपट्टी दिखाई और इसे हिन्दू धर्म और नारी शक्ति का अपमान बताने का उच्च-तीव्रता का रुदन शुरू कर दिया।
कहने की आवश्यकता नहीं कि यह गंभीर राजनीतिक बहस का तरीका नहीं है, मगर मोदी और उनके राजनीतिक कुनबे से किसी संजीदा विमर्श की उम्मीद करता भी कौन है? यह वह गिरोह है, जो स्वयं अपने द्वारा लिखा-पढ़ी में किये गए वायदों को स्वयं ही जुमला बताकर उनका मखौल बनाता रहा है, ऊंची-ऊंची फेंकता रहा है, सवालों से कतराता रहा है, फिर भला दूसरों के कहे समुचित जवाब तो क्या ही देगा। मगर इस बार कुछ ज्यादा ही ऊंची फेंक दी गयी है, इस सन्दर्भ में इस्तेमाल किये गए मिथक के रूपक में ही कहें, तो यह वैसा ही है, जैसे मारीच और दु:शासन नारियों के सम्मान की दुहाई दें, जैसे शैतान कुरान की आयतें पढतें हुए तस्बीह के दाने और गुरियाँ फेरे!!
लोगों की याददाश्त कमजोर होती है, मगर इतनी भी कमजोर नहीं कि वे हाल की घटनाओं को भी भूल जाएँ। भारत के कुश्ती संघ के अध्यक्ष द्वारा देश की अब तक की श्रेष्ठतम महिला पहलवानों के यौन उत्पीडन के सबूतों के साथ न्याय मांगने की गुहार करते जंतर मंतर पर बैठने, मो-शा की पुलिस द्वारा उन्हें बाल पकड़ खींचने, घसीटने के भयानक दृश्यों को भूल जाएँ। अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया के दवाब में कराये गए चुनाव में इसी यौन अपराधी के खासमखास चौये के कुश्ती संघ का अध्यक्ष बन जाने के बाद भीगी आँखों के साथ कुश्ती छोड़ने का एलान करती साक्षी मलिक को भूल जाएँ।
मो-शा सरकार द्वारा इस यौन दुराचारी को बचाने के लिए हर संभव-असंभव तिकड़म को भुला दें और यह भूल जाएँ कि यह यौन दुराचारी और कोई नहीं, स्वयं मोदी का प्रिय भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह था ; जो आज अपने नाम के आगे “मैं भी मोदी का परिवार” लिखे घूम रहा है। ताज्जुब नहीं होगा कि आज-कल में इसे परोक्ष या अपरोक्ष तरीके से भाजपा का टिकिट मिलने का एलान हो जाए। लखीमपुर खीरी हत्याकांड के आव्हानकर्ता टेनी मिश्रा टिकिट पा ही चुके हैं।
उन्नाव में नाबालिग बच्ची के साथ बलात्कार करने वाला और उसके बाद पीड़िता के पिता को मार डालने और खुद पीड़िता को मरवाने की कोशिश करने वाला कुलदीप सेंगर भी मोदी की ही भाजपा का विधायक था। नारी सम्मान की दुहाई देने वाले मोदी की केंद्र और उत्तरप्रदेश की सरकारों ने इसे बचाने में तब तक कोई कसर नहीं छोड़ी, जब तक कि खुद सुप्रीम कोर्ट ने सख्त निर्देश नहीं दिए।
शाहजहांपुर का कृष्णपाल सिंह उर्फ़ स्वामी चिन्मयानंद तो अपनी ही शिष्याओं के अपहरण और बलात्कार दो-दो मामलों के नामजद मुजरिम होने के बावजूद मजे में रहा और मोदी-योगी के प्रताप से “सबूतों के अभाव” में छूट भी गया। अटल सरकार में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री रहा यह कथित स्वामी, योगी को मुख्यमंत्री बनाने का श्रेय लेने के बाद अब बिना नाम लिए उनके अगला प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी कर रहा है।
मोदी और खट्टर के सगे गुरमीत राम रहीम बलात्कार और हत्याओं में डबल आजीवन कारावास और आख़िरी सांस तक जेल में रहने की सजा पाने के बाद, हर चुनाव में भाजपा के लिए वोट बढ़वाने के “पुण्यकर्म” के लिए इतनी ज्यादा बार पैरोल पर बाहर रहे कि आखिर में सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पडा।
अब लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा पुनः अपने इस सुपर स्टार प्रचारक को बाहर लाने की जुगाड़ में हैं। एक और जघन्य बलात्कारी और हत्यारे आसाराम के साथ गाते, नाचते, थिरकते वीडियो में मोदी सहित उनके पूरे नवग्रह दिखाई देते हैं। बचाने की कोशिश तो इसको भी खूब हुयी, आज भी हो रही है। खट्टर की सरकार का ही मंत्री सदीप सिंह था, जिस पर एक महिला कोच के आरोपों के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई ; जब तक खट्टर रहे, तब तक मंत्री बना रहा। हाथरस की दलित युवती के साथ दहलाने वाली जघन्यता में सबूत मिटाने, बिना परिजनों को दिखाए ही लाश जलवाने और बाद में असली अपराधियों को बचाने वाली सरकार किसी और की नहीं, इन्हीं मोदी की भाजपा की थी, जो अब नारी शक्ति पूजक का चोला धारण करने की कोशिश कर रहे हैं।
खुद मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में विश्वविद्यालय कैंपस में आईआईटी छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार करने वाले तीनों स्वयंसेवक तो खुद मोदी जी के ही सगे थे, उनके लोकसभा क्षेत्र की प्रचार वाहिनी के बड़े-बड़े पदाधिकारी दो महीने तक छुट्टा घुमते रहे और मध्यप्रदेश में मोदी के प्रचार अभियान की कमान संभाले रहे। कठुआ में नन्हीं-सी बच्ची आसिफा को मंदिर में बंदी रखकर उससे लगातार बलात्कार कर उसकी हत्या कर देने वाले बर्बरों को बचाने के लिए झंडे लेकर जलूस निकालने वाले भी इन्हीं मोदी की भाजपा के मंत्री और संस्कारी संगठन संघ के लोग थे। मोदी के गुजरात में बिलकिस बानो काण्ड में हत्यारों की रिहाई कराने वाली मोदी की ही भाजपा सरकार थी, उनका फूलमालाओं से सत्कार करने वाले भी इसी गिरोह के थे, उनके संस्कारी होने का प्रमाणपत्र थमाने वाले भी मोदी के ही विधायक थे।
बलात्कारी भाजपाई शूरवीर अनंत हैं और उनकी कहानियां भी अनंत हैं ; अटल बिहारी वाजपेयी के अन्यथा आपत्तिजनक मुहावरे की तर्ज में कहें तो, सारे भाजपाई बलात्कारी नहीं है, मगर जितने भी नामचीन बलात्कारी हैं, वे भाजपाई जरूर हैं। जो दुष्कर्म के समय नहीं थे, वे बाद में पहली फुर्सत में भाजपाई हो गए हैं, हो रहे हैं। अभी हाल में पूर्व कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल के भाजपा में शामिल होने के पीछे भी यही कहानी है। इधर उनके – सिर्फ नाम के सज्जन – भाई सज्जन जिंदल के महाराष्ट्र में एक बलात्कार के मामले में मुजरिम बने और एफआईआर रद्द कराने की सारी कोशिशें विफल हो गयी, तो उन्हें बचाने के लिए भाजपा के कुंड में डुबकी लगाने का ही रास्ता ही नवीन-मार्ग लगा, सो चल निकले।
ऐसे मामलों में भाजपाई ना उम्र की सीमा मानते हैं, न जन्म का बंधन ही देखते हैं। अनेक मामलों में इनके हाथों इनकी नजदीकी रिश्तेदार स्त्रियाँ ही उनकी वासना का शिकार बनी हैं। अभी-अभी सामने आये कर्नाटक की भाजपा के पितृपुरुष, पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा पर एक नाबालिग युवती द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप ने इस कुनबे के चाल, चरित्र, चेहरे का मुखौटा उतार कर दिया है।
मुम्बई के दादर में जो गला फाड़ कर नारी शक्ति की महानता का झूठा बखान कर रहे थे, खुद उन मोदी ने सूर्पणखा की हंसी, पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड और कांग्रेस की विधवा सहित न जाने कितने शर्मसार कर देने वाले न जाने कितने बोलवचन दिए हैं।
नारियों को हीन और उन्हें भोग्या मानना इनकी विचारधारा का सबसे गाढ़ा और पक्का हिस्सा है। इनके सर्वोच्च मार्गदर्शक सावरकर बलात्कार को एक राजनीतिक हथियार की मान्यता दे चुके हैं और इसे आजमाने का आव्हान भी कर चुके हैं। आरएसएस महिलाओं – मोदी जिन्हें नारी शक्ति कह रहे हैं – के बारे में किस तरह के विचार रखता है, इस बारे में प्रामाणिक उद्धरणों और संदर्भों के साथ पहले भी लिखा जा चुका है। पूर्व से लेकर वर्तमान तक के सरसंघचालक अपने भाषणों और उपदेशों में इन्हें बार-बार दोहराते भी रहते हैं।
मोदी राज में मणिपुर की महिलाएं बड़े पैमाने पर इसे भुगत भी चुकी हैं ; और यह सिर्फ मणिपुर की कहानी नहीं है। इन स्वयंभू नारी शक्तिसाधकों के राज में इस देश की महिलायें जिस यातना से गुजरी हैं, उसकी गवाही तो खुद भारत सरकार के आंकड़े देते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ चिंतित है कि वर्ष 2014 के बाद भारत में भूखी और कुपोषित महिलाओं की तादाद बढ़ी है, प्रसव और बाल मृत्यु दर में जो थोड़ी-बहुत कमी आ रही थी, वर्ष 2015 के बाद वह भी ठिठकी हुयी है। लडकियां स्कूल छोड़ रही हैं, स्त्रियाँ रोजगार से बाहर धकेली जा रही हैं और यौन हिंसा खतरनाक रफ़्तार से बढ़ रही है। इसमें भी बच्चियों के यौन उत्पीडन में तो वर्ष 2017-22 के पांच सालों के बीच 94 प्रतिशत से भी अधिक की वृद्धि हुई है। इतने जघन्य और शर्मनाक रिकॉर्ड के बावजूद नारी शक्ति की गाथा गाने का साहस जुटाने के लिए सिर्फ निर्लज्ज और ढीठ होना काफी नहीं है, मोदी होना भी जरूरी है।
इन सबकी याद जनता को है, यही अहसास इन्हें डराए हुए है। उन्हें भय है कि सारे काले-पीले धन, कच्चे-पक्के आलुओं को अपनी टोकनी में भरने और पालतू मीडिया के धुआंधार समर्थन के बाद भी 400 तो दूर, बहुमत के करीब तक पहुंचना भी असंभव लग रहा है। कोई शक नहीं कि उनके इस डर को सचमुच के नतीजे तक पहुँचाने का काम देश के मतदाता करेंगे!!
उक्त विचार लेखक के अपने निजी विचार हैं, एडमिन की सहमति जरूरी नहीं
(लेखक ‘लोकजतन’ के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं)