आलेख – मोनिका कश्यप –
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही अर्धनारीश्वर रूप प्राप्त किया था। इसके पीछे एक महत्वपूर्ण प्रसंग है। जब सृष्टि की रचना हो रही थी, तब ब्रह्मांड में प्राणियों के सृजन के लिए एक विशेष शक्ति की आवश्यकता थी। भगवान शिव ने इस शक्ति को प्राप्त करने के लिए मां सिद्धिदात्री की उपासना की।
मां सिद्धिदात्री ने शिव को वरदान दिया और उनकी आधी काया में स्वयं को समाहित कर लिया, जिससे शिव का अर्धनारीश्वर रूप प्रकट हुआ। इस रूप में शिव का आधा शरीर पुरुष (शिव) और आधा शरीर स्त्री (पार्वती या शक्ति) के रूप में था। इस अर्धनारीश्वर स्वरूप का प्रतीकात्मक महत्व यह है कि सृष्टि में सृजन और संहार दोनों के लिए पुरुष और प्रकृति (शक्ति) का संतुलन आवश्यक है।
मां सिद्धिदात्री से प्राप्त इस वरदान के बाद शिव संपूर्ण हुए और सृष्टि की रचना संभव हो सकी। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि बिना शक्ति के शिव अधूरे हैं, और शक्ति ही सृजन की मूल शक्ति है।
मां सिद्धिदात्री और भगवान शिव का संबंध सृष्टि और शक्ति के गहरे आध्यात्मिक सिद्धांत से जुड़ा है। मां सिद्धिदात्री नवरात्रि के नौवें दिन पूजी जाने वाली देवी हैं, जिन्हें सिद्धियों की देवी माना जाता है। उनके नाम का अर्थ है “सिद्धियों की दात्री,” यानी वह देवी जो अपने भक्तों को आठ प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं: अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व।
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत शांत और करुणामय है। चार भुजाओं वाली यह देवी कमल पर विराजमान रहती हैं और उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल होता है। उनकी पूजा से साधक को सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है और उसे सिद्धियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
भगवान शिव और अर्धनारीश्वर रूप:
मां सिद्धिदात्री का भगवान शिव से गहरा संबंध है, विशेष रूप से शिव के अर्धनारीश्वर रूप से। पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने सृष्टि के संतुलन के लिए शक्ति (मां दुर्गा) की उपासना की, तब मां सिद्धिदात्री ने उन्हें अपना वरदान दिया। इस वरदान से भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर रूप धारण किया, जिसमें उनका आधा शरीर पुरुष (शिव) और आधा शरीर स्त्री (शक्ति) का था।
मां सिद्धिदात्री और भगवान शिव का संबंध सृष्टि और शक्ति के गहरे आध्यात्मिक सिद्धांत से जुड़ा है। मां सिद्धिदात्री नवरात्रि के नौवें दिन पूजी जाने वाली देवी हैं, जिन्हें सिद्धियों की देवी माना जाता है। उनके नाम का अर्थ है “सिद्धियों की दात्री,” यानी वह देवी जो अपने भक्तों को आठ प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं: अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व।
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत शांत और करुणामय है। चार भुजाओं वाली यह देवी कमल पर विराजमान रहती हैं और उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल होता है। उनकी पूजा से साधक को सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है और उसे सिद्धियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
भगवान शिव और अर्धनारीश्वर रूप:
मां सिद्धिदात्री का भगवान शिव से गहरा संबंध है, विशेष रूप से शिव के अर्धनारीश्वर रूप से। पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने सृष्टि के संतुलन के लिए शक्ति (मां दुर्गा) की उपासना की, तब मां सिद्धिदात्री ने उन्हें अपना वरदान दिया। इस वरदान से भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर रूप धारण किया, जिसमें उनका आधा शरीर पुरुष (शिव) और आधा शरीर स्त्री (शक्ति) का था।
अर्धनारीश्वर का प्रतीक यह दर्शाता है कि शिव और शक्ति अविभाज्य हैं। पुरुष और प्रकृति, स्थिरता और गतिशीलता, निर्माण और विनाश के संतुलन से ही सृष्टि का संचालन होता है। शिव बिना शक्ति के निष्क्रिय हैं, और शक्ति बिना शिव के अनियंत्रित। इस प्रकार, दोनों का मिलन सृजन और संतुलन का प्रतीक है।
मां सिद्धिदात्री का महत्व:
- सिद्धियों की दात्री: मां सिद्धिदात्री अपने भक्तों को आठ प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं, जिससे वे आध्यात्मिक और भौतिक जीवन में सफल होते हैं।
- अर्धनारीश्वर की उत्पत्ति: मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर रूप धारण किया, जो पुरुष और स्त्री तत्वों के सामंजस्य का प्रतीक है।
- सर्वसिद्धि प्राप्ति: मां सिद्धिदात्री की उपासना से साधक सभी प्रकार की सिद्धियों और आशीर्वाद को प्राप्त करता है, जो उसे जीवन में सफलता, सुख, और शांति प्रदान करता है।
मां सिद्धिदात्री और भगवान शिव के बीच का यह आध्यात्मिक संबंध सृष्टि के संतुलन और अस्तित्व के गहरे सिद्धांत को दर्शाता है, जो हिंदू धर्म के दर्शन और पुराणों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।