(आलेख- मोनिका कश्यप)
हरतालिका तीज भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह व्रत और उत्सव विशेषकर उत्तर भारत, नेपाल, और बिहार, झारखंड जैसे राज्यों में अधिक प्रचलित है। हरतालिका तीज का नाम दो शब्दों से बना है – ‘हरत’ जिसका अर्थ है ‘अपहरण’ और ‘आलिका’ जिसका अर्थ है ‘मित्र’। यह पर्व देवी पार्वती और भगवान शिव के पुनर्मिलन की कथा से जुड़ा हुआ है, और महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए मनाया जाता है।
पौराणिक कथा: हरतालिका तीज से जुड़ी मुख्य कथा यह है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया और उनके पति बने। इस व्रत का नाम ‘हरतालिका’ इसलिए पड़ा क्योंकि पार्वती की सखियों ने उन्हें पिता के घर से ‘हरित’ कर एक गुफा में ले जाकर इस कठोर व्रत का पालन करने में उनकी मदद की थी।
व्रत का पालन और विधि: हरतालिका तीज का व्रत निर्जला और निराहार होता है। इसे अत्यंत कठोर माना जाता है, क्योंकि व्रत रखने वाली महिलाएं दिन भर बिना जल और अन्न के रहती हैं। इस दिन महिलाएं सज-धजकर पारंपरिक परिधान पहनती हैं और विशेष रूप से हरे रंग का महत्व होता है, जो समृद्धि और हरियाली का प्रतीक है। महिलाएं पार्वती और शिव की पूजा करती हैं, उनकी मूर्तियों को गंगा जल, फूल, फल और मिठाई से सजाया जाता है। रात भर जागरण कर भजन-कीर्तन किए जाते हैं, और अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है।
सामाजिक महत्व: हरतालिका तीज का सामाजिक महत्व भी अत्यधिक है। यह पर्व महिलाओं के सामूहिकता और एकजुटता का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं अपने रिश्तों को मजबूत करती हैं, परिवार में सामंजस्य और प्रेम बढ़ाने के लिए यह अवसर महत्वपूर्ण माना जाता है। महिलाएं समूह में इकट्ठी होकर नृत्य, गान और पूजा करती हैं, जिससे उनमें एकता और सौहार्द का भाव विकसित होता है।
इसके अलावा, हरतालिका तीज समाज में महिलाओं के त्याग, समर्पण और धर्म के प्र आस्था का प्रतीक भी है। यह व्रत यह दर्शाता है कि किस प्रकार महिलाएं अपने परिवार के लिए त्याग करती हैं और उनकी खुशहाली के लिए कठिन तपस्या करती हैं। साथ ही, यह पर्व नारी शक्ति की महिमा का उत्सव भी है, जहां महिलाएं अपनी इच्छाशक्ति और संकल्प को दर्शाती हैं।
इस प्रकार हरतालिका तीज न केवल धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है। यह पर्व महिलाओं के जीवन में आध्यात्मिक उन्नति और पारिवारिक सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। भारतीय समाज में यह त्योहार नारी सशक्तिकरण और सामूहिकता का प्रतीक है, जो समाज में सौहार्द और प्रेम का प्रसार करता है।
(लेखिका वर्तमान में एक वरिष्ठ शिक्षिका हैं)